सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

आख़िर कब तक

मौत की राजनीती ये आजकल हमारे देश के नेताओ की पहचान बन गई है ...पहले तो धर्म ,जातिवाद क्षेत्रवाद की राजनीती करते थे... अब तो ये हमारे खून की राजनीती करने लगे है... लोकतंत्र का सही मायने क्या है जिनहोने देश की आजादी के लिए इतनी बरी कुर्बानिया दी है... क्या आज उनकी आत्मा , आज की इस घिनोनी राजनीती से तर्त्प्ता होगा हमारे देश को जन्म हुई साठ साल हो गए , आजादी से पहले देखा जाए... तो राजनीती देश के लिए करते थे... वे जब घरों से निकलते थे तो ये कहकर की भारत माँ के लिए अपने को सहीद कर देगे लेकिन गद्दारी नही करेंगे जिएगे देश के लिए मरेंगे देश के लिए ....लेकिन आज के नेता तो घरो से ये कहकर निकलते है की भारत माँ को नोच नोच कर खायेंगे चाहे देश रहे या न रहे .जब तक हमारे देश का नेतृत्व युवाओ के हाथ में नही होगा तो इस देश का यही होगा जिस देश के पास स्वाभिमान नही ,जिसके पास शौर्य नही उस देश का भला क्या होगा ..दिल्ली में बैठी अंधी और बहरी सरकार सिर्फ़ मुह टुकुर टुकुर देखते रहती है ....क्या कारण है आज युवाओ के हाथो में कलम के बजाय एके ४७ है... क्या कारन है नक्स्ल्व्बाद का
आखिर कब तक.....................

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